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Friday, 29 February 2008

सूरत मेरी है गायब..

दिखते नहीं थे वो अब तक
तो अच्छा था
जो परदा रहा था आधा
वो अच्छा था




मस्त थी दुनिया
दिन कमाल थे
कहते नहीं थे कैसे
मीरा के साल थे

याद है कैसे गुंचों में बसे थे हम
हर शख़्स था अपना
कुछ यूं रहे थे हम

दिन गुज़र गये औ रातें निकल गईं
बंद थी जो अब तक वो कली खिल गई

फूल की किस्मत थी वो या
कुछ बात थी उसमें
वो आई देखने
कि क्या ख़ास है इसमें
सोचता रहा मैं के क्या करेगी वो
देख लिया अब जो
तो क्या कहेगी वो

देख पाई वो जो मैं देखने ना पाया
चेहरा मेरा था जांचा
मैं जांचने ना पाया

कहती चली गई वो
कुछ नया ना है है पुराना
सूरत तो तुम अपनी
ख़ुद को भी ना दिखाना
मान गया मै बातें
जान के भी अब तो
सूरत मेरी है गायब
दो चार सौ दिन को

निकाल दो हमको क्या काम अब है करना
Interesting है ये मेरे आईने का कहना

दिन गुज़र गये औ रातें निकल गईं
चल रहीं थीं जैसी चलती चली गईं

खलने लगा यूं जब
खालीपन ये अपना
चाहने लगा कुछ
जिसे देर तक हो तकना

चाह में इसकी
खिड़की जो खुल गई
वो खड़ी वहां पर
इत्तफ़ाकन मिल गई

छिपा रहा था चेहरा
ख़म-ए-गेसूओं के साये में
अब हट चुके थे गेसू
उस चेहरा-ए-साये से
आईना वो मेरा
मुझसे ही मुड़ गया
अजनबी की तरफ़ झांका
जा कर के जुड़ गया…….
( कविता अधूरी है..... पूरी करने का मन नहीं है....)
--- सुधीर राणा



(गुंचे=blossom or flower bud) (ख़म=Curls of the hair)

Saturday, 16 February 2008

‘राज के लिये उधेड़बुन’

अभी जब राज के सैनिकों के नव-निर्माण से मुंबई उजड़ रही है, ऐसे समय में भारत की संस्कृति और विभिन्नता का अनूठा उदाहरण भी देखने को मिला।
बात एक फ़िल्म उधेड़बुन की... यह फ़िल्म राज ठाकरे के लिये वाकई एक उधेड़बुन है, क्योंकि जहां वो और उनके जैसे नेता देश को धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति के नाम पर बांटने में लगें हैं। वहीं उधेड़बुन नाम की यह लगभग मूक फ़िल्म इन नेताओं से कुछ कहती है।
21 मिनट की इस शार्ट फ़िल्म को बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर एवार्ड मिला है। फ़िल्म भोजपुरी में है, जिसे सिद्धार्थ सिन्हा नाम के बंगाली युवा ने निर्देशित किया है। अहम् बात... बंगाली निर्देशक के निर्देशन में बनी इस भोजपुरी फ़िल्म के सभी एक्टर्स मराठी हैं।
कम संवादों और नये तरह के Narration की यह फ़िल्म.... आशु नाम के एक ऐसे लड़के के बारे में हैं जो लड़कपन को पीछे छोड़ किशोरावस्था की उधेड़बुन की ओर बढ़ रहा है। उत्तर-प्रदेश के गाजीपुर में जन्में निर्देशक सिद्धार्थ सिन्हा ने इस फ़िल्म को FTII, Pune में अपने ग्रेजुएशन के दौरान बनाया था।
अलग-अलग संस्कृति के लोगों ने पहले भी मिलकर काम किया है....... हमारी फ़िल्मों ने पहले भी प्रतिष्ठित पुरूस्कार जीते हैं.... लेकिन इस बार सबसे ख़ास बात है Timing, जब स्वार्थी लोग भाषा और संस्कृति के नाम पर राजनीति कर रहे हैं... तब फ़िल्म बिल्कुल सही समय पर सम्मान लेकर आई है....
तो राज ठाकरे.... जब विभिन्न संस्कृतियों के पारस्परिक काम का विदेशी भी सम्मान कर रहे हैं.... तो आप भी भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के इस देश को इज़्ज़त देना सीखो। और सुनो कि भोजपुरी भाषा..... मराठी अभिनेताओं.... और बंगाली निर्देशक की उधेड़बुनआपसे जो कहती है वो कुछ इस तरह है-
हिन्द देश के निवासी सभी जन एक हैं, रंग रूप वेश भाषा चाहे अनेक हैं
बचपन में किन्हीं कारणों से अगर आपने इस गीत को नहीं सुना हो (वैसे अगर सुना होता तो आप वो सब नहीं करते जो आप कर रहे हो).... हां तो अगर नहीं सुना हो तो यह यहां आपके लिये उपलब्ध है......
http://www.youtube.com/watch?v=uaTYLy1Jgio

Wednesday, 13 February 2008

Journalist भाईयों से एक बात....



भाई अनुराग पुनैठा के ब्लॉग इंडिया बोल पर हाल ही में एक लेख पढ़ा.... लेख आज-तक और इसके पितामह श्री सुरेन्द्र प्रताप सिंह जी के बारे में था... लिखने वाले ने लिखा था.... अगर एस. पी. आज जीवित होते तो आज-तक देखकर मर जाते..... सच ही लिखा था... मुझे भी कुछ लिखने की जरूरत महसूस हुई....
ज्यादा समय नहीं हुआ जब मैंने ब्राडकॉस्ट जर्नलिज्म में मास्टर्स किया... लेकिन किसी भी न्यूड चैनल... ओह माफ़ किजियेगा.. किसी भी न्यूज़ चैनल में काम नहीं मिला.... सच बताऊं तो बहुत मन से कोशिश भी नहीं की... कारण... ये समझ नहीं आया कि So called News Channels समाज में होने वाली ख़बरें दिखातें हैं या ख़बरों को बनाते हैं.... अपनी बात करना इसलिये जरूरी लगा…. ताकि यह बताया जा सके कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ में जंग लग गया है... और इस जंग लगे स्तम्भ को संभालने में हमारे सामने कोई अच्छे उदाहरण भी नहीं... बात आज तक की हो रही थी तो दरअसल ... सबसे तेज भागते हुए... यह इतनीं दूर निकल आया है कि ख़ुद की बनाई भूल-भुलैया में खो गया है.... रुको... सोचो क्या यह वही मुक़ाम है... जहां के लिये निकले थे...? शुरू में Stars की तरह चमकने वाले चैनल भी अपनी चकाचौंध से अंधे हो गये हैं कि उन्हें अच्छे बुरे..... सही गलत का होश ही नहीं रह गया है.... इनके अलावा कुछ चैनल तो ऐसे हैं कि अगर आप सच में उनके बारे में comment सुनना चाहेंगे..... तो इस ब्लॉग को Rated category में डालना पड़े....
ऐसा नहीं है कि कोई भी अच्छा काम नहीं कर रहा है.... जो अच्छा काम कर रहे हैं उनका नाम गिनाना जरूरी है... NDTV का नाम लेकर यह बताना भी जरूरी है कि बिना ख़बर बनाये और नाग-नागिन दिखाये जाने के बावजूद .... TRP भी ली जा सकती है और दर्शकों का प्यार भी.... इसके अलावा अगर फूहड़ता देखकर बोर हो गयें हो और दूरदर्शन देखने की इच्छा ना हो तो सहारा समय देखकर भी दीन-दुनिया की ख़बर रखी जा सकती है....
Journalist भाईयों से एक बात और... मैं फ़िलहाल एक थियेटर टीचर हूं... संतुष्ट हूं.... मेरे बच्चे.... आपके बच्चे और एक पान वाले के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ेंगे... मैं अपने काम से, पान वाला अपने काम से संतुष्ट हैं... क्या आप जो कर रहे हैं आप उससे संतुष्ट हैं...?

Journalist भाईयों से एक बात....

Journalist भाईयों से एक बात....

भाई अनुराग पुनैठा के ब्लॉग इंडिया बोल पर हाल ही में एक लेख पढ़ा.... लेख आज-तक और इसके पितामह श्री सुरेन्द्र प्रताप सिंह जी के बारे में था... लिखने वाले ने लिखा था.... अगर एस. पी. आज जीवित होते तो आज-तक देखकर मर जाते..... सच ही लिखा था... मुझे भी कुछ लिखने की जरूरत महसूस हुई....

ज्यादा समय नहीं हुआ जब मैंने ब्राडकॉस्ट जर्नलिज्म में मास्टर्स किया... लेकिन किसी भी न्यूड चैनल... ओह माफ़ किजियेगा.. किसी भी न्यूज़ चैनल में काम नहीं मिला.... सच बताऊं तो बहुत मन से कोशिश भी नहीं की... कारण... ये समझ नहीं आया कि So called News Channels समाज में होने वाली ख़बरें दिखातें हैं या ख़बरों को बनाते हैं.... अपनी बात करना इसलिये जरूरी लगा…. ताकि यह बताया जा सके कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ में जंग लग गया है... और इस जंग लगे स्तम्भ को संभालने में हमारे सामने कोई अच्छे उदाहरण भी नहीं... बात आज तक की हो रही थी तो दरअसल ... सबसे तेज भागते हुए... यह इतनीं दूर निकल आया है कि ख़ुद की बनाई भूल-भुलैया में खो गया है.... रुको... सोचो क्या यह वही मुक़ाम है... जहां के लिये निकले थे...? शुरू में Stars की तरह चमकने वाले चैनल भी अपनी चकाचौंध से अंधे हो गये हैं कि उन्हें अच्छे बुरे..... सही गलत का होश ही नहीं रह गया है.... इनके अलावा कुछ चैनल तो ऐसे हैं कि अगर आप सच में उनके बारे में comment सुनना चाहेंगे..... तो इस ब्लॉग को Rated category में डालना पड़े....

ऐसा नहीं है कि कोई भी अच्छा काम नहीं कर रहा है.... जो अच्छा काम कर रहे हैं उनका नाम गिनाना जरूरी है... NDTV का नाम लेकर यह बताना भी जरूरी है कि बिना ख़बर बनाये और नाग-नागिन दिखाये जाने के बावजूद .... TRP भी ली जा सकती है और दर्शकों का प्यार भी.... इसके अलावा अगर फूहड़ता देखकर बोर हो गयें हो और दूरदर्शन देखने की इच्छा ना हो तो सहारा समय देखकर भी दीन-दुनिया की ख़बर रखी जा सकती है....

Journalist भाईयों से एक बात और... मैं फ़िलहाल एक थियेटर टीचर हूं... संतुष्ट हूं.... मेरे बच्चे.... आपके बच्चे और एक पान वाले के बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ेंगे... मैं अपने काम से, पान वाला अपने काम से संतुष्ट हैं... क्या आप जो कर रहे हैं आप उससे संतुष्ट हैं...?

Tuesday, 12 February 2008

मराठी स्वाद



तुम्हें जिसका चेहरा पसंद नहीं

उसे मार डालो

भले उसमें महबूब दोस्त चेहरे क्यों न शामिल हों

जो रोज़ी-रोटी की तलाश में

बिहार उत्तर-प्रदेश के सुदूर गाँवों से आये हैं

उनके पेट में रोटी की जगह गोली भर दो

अचानक बने दुश्मनों को

मार डालो

और भर जाओ

बिन ब्याहे गर्व से

जो लोग भागे हैं नहीं

हुऐ जो बेइज़्ज़त और दरबदर

उन कर्मभूमि के शरणार्थियों को

शहर की फ़ेंसिंग कर ठूंस दो उनकी मलिन बस्तियों में

कोसी यमुना के पानी को सुखानें में

मदद लो

जलती बसों धूं धूं करती कारों की आग से

जल्द से जल्द

शिरडी का जाति प्रमाण-पत्र बनवा उस पर आजीवन राजकरो

बरबाद समोसों की चटनी और टैक्सी वाले के लहू के मिक्सचर से बने पूरबिये ब्रांड को चखो

और महसूस करो इसमें

मराठी स्वाद।

- सुधीर राणा