Friday, 29 February 2008

सूरत मेरी है गायब..

दिखते नहीं थे वो अब तक
तो अच्छा था
जो परदा रहा था आधा
वो अच्छा था




मस्त थी दुनिया
दिन कमाल थे
कहते नहीं थे कैसे
मीरा के साल थे

याद है कैसे गुंचों में बसे थे हम
हर शख़्स था अपना
कुछ यूं रहे थे हम

दिन गुज़र गये औ रातें निकल गईं
बंद थी जो अब तक वो कली खिल गई

फूल की किस्मत थी वो या
कुछ बात थी उसमें
वो आई देखने
कि क्या ख़ास है इसमें
सोचता रहा मैं के क्या करेगी वो
देख लिया अब जो
तो क्या कहेगी वो

देख पाई वो जो मैं देखने ना पाया
चेहरा मेरा था जांचा
मैं जांचने ना पाया

कहती चली गई वो
कुछ नया ना है है पुराना
सूरत तो तुम अपनी
ख़ुद को भी ना दिखाना
मान गया मै बातें
जान के भी अब तो
सूरत मेरी है गायब
दो चार सौ दिन को

निकाल दो हमको क्या काम अब है करना
Interesting है ये मेरे आईने का कहना

दिन गुज़र गये औ रातें निकल गईं
चल रहीं थीं जैसी चलती चली गईं

खलने लगा यूं जब
खालीपन ये अपना
चाहने लगा कुछ
जिसे देर तक हो तकना

चाह में इसकी
खिड़की जो खुल गई
वो खड़ी वहां पर
इत्तफ़ाकन मिल गई

छिपा रहा था चेहरा
ख़म-ए-गेसूओं के साये में
अब हट चुके थे गेसू
उस चेहरा-ए-साये से
आईना वो मेरा
मुझसे ही मुड़ गया
अजनबी की तरफ़ झांका
जा कर के जुड़ गया…….
( कविता अधूरी है..... पूरी करने का मन नहीं है....)
--- सुधीर राणा



(गुंचे=blossom or flower bud) (ख़म=Curls of the hair)

4 comments:

Sachin said...

Kya bat hai yaar,Acting to achha karte hi ho,Kavi kab se ban gaye?

Sachin said...

Kya bat hai yaar,Acting to achha karte hi ho,Kavi kab se ban gaye?

Sachin said...

yaar ye kavi kahan tha, aaj pata chhala.

dushyant said...

kavitayen aksar poori ho hi kahan paati hai mere bhai
man ke jazbaton ko shabdon me ukerna shuru karo to khand kavya aur maha kavya bhi adhoore se hi lagne lagte hain. baat isme nahin hai ki kavita adhuri hai. baat isme hai ki apne shuruat ki aur kuchh srijan kiya ab poora adhura to jeevan chakra hai chalta rahega. abhi ke liye vicharon ko moort roop diya hai yahi sarahneeya hai. saadhuvaad
dushyant
chandmutthiashaar.blogspot.com